🏼 वाफिया अन्सार
साल 2002 में गोधरा में हुए दंगे के समय बिलकिस बनो, जो 5 माह की गर्भवती थी, फिर भी उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया| साथ ही उसकी 3 साल की बच्ची सहित परिवार के 13 लोगों की हत्या कर गई| अन्य मुस्लिम महिलाएं भी इसकी शिकार हुई थी| इस बात की चश्मदीद बिलकिस बानो थी| बावजूद इसके बिलकिस बानो को न्याय के लिए इतना लम्बा संघर्ष करना पड़ा| बिलकिस बानो के अलावा पहलू ख़ान और मोहम्मद अखलाक़ की बेवाओं का क्या ? जिनकी बिना किसी वजह हत्या कर दी गई, जिनकी ज़िंदगियां कथित ‘गौरक्षकों’ की हिंसा से बर्बाद हो गईं! जेएनयु के छात्र नाजिब अहमद का 2 साल बाद भी पता नहीं चल सका| नाजिब की माँ आज भी इंतज़ार कर रहीं है और इंसाफ के लिए पुलिस थाने और कोर्ट कचहरी की ठोकरे खा रहीं है! पीएम मोदी ने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में कहा था, ‘मैं मुस्लिम महिलाओं को विश्वास दिलाता हूं कि पूरा देश उन्हें न्याय दिलाने के लिए पूरी ताकत से साथ खड़ा है।’ अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुस्लिम महिलाओं के साथ इतनी ही हमदर्दी रखतें है, तो इन मुस्लिम महिलाओं को न्याय के लिए इतने धक्के क्यूँ खाने पड़े?हकीकत ये है कि भाजपा सरकार के एजेंडे में कभी मुस्लिम तकवियत शामिल नहीं रहा। तीन तलाक व बहुविवाह पर केन्द्र सरकार का रवैय्या ने सरकार की मुस्लिम विरोधी मानसिकता को नंगा कर दिया है।
केंद्र सरकार तीन तलाक पर अध्यादेश ले आयी है।इसअध्यादेश के मुताबिक अब तीन तलाक दिया तो तीन साल जेल होगी।बिल पास न हुआ तो मोदी सरकार नैतिकता के निचले स्तर पर गिरकर यह अध्यादेश लायी है।पिछले दिनों मोदी कैबिनेट ने इस अध्यादेश को हरी झंडी दे दी है। मोदी सरकार संसद में तीन तलाक के खिलाफ मुस्लिम वीमन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स इन मैरिज 2017 ) बिल पास नहीं करा पाने की सूरत में यह अध्यादेश लायी है। अध्यादेश में भी वही प्रावधान किए गए हैं जो उस बिल में है। इस बिल को पिछले साल दिसंबर में लोकसभा ने पास कर दिया है, लेकिन राज्यसभा में बिल अटका पड़ा है। राज्यसभा में सरकार के पास जरूरी तादाद नहीं है, इसलिए पिछले मानसून सत्र में भी सरकार बिल पास नहीं करवा सकी। हालांकि, अध्यादेश लाने के बावजूद सरकार को यह बिल संसद से छह महीने के अंदर पास कराना अनिवार्य होगा। सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि अध्यादेश लाने की शक्ति कानून बनाने की शक्ति के बराबर नहीं है। कोर्ट ने कहा था कि किसी बिल के पास नहीं होने पर उसके लिए अध्यादेश लाना संविधान के साथ धोखाधड़ी है और इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती है।
सरकार का यह कहना कि इस तीन तलाक परम्परा का धर्म से कोई ताल्लुक नहीं, मुस्लिम समाज को पसन्द नहीं आया है। पर्सनल लॉ बोर्ड, मुस्लिम संस्थाएं, मशहूर हस्तियों व उलेमा तो इसका विरोध कर ही रहे हैं, अब खुद महिलाओं की भी आवाज इसके विरोध में उठनी शुरू हो गई है। मुस्लिम महिलाओं के हक की लड़ाई लड़ने और उनके विकास के लिये काम करने वाले कई महिला संगठन सरकार के रवैय्ये से खुश नहीं हैं। हकीकत में सरकार को इस्लामिक कानून में दखल देने का कोई हक नहीं। सरकार को इस गंभीर मसले में बेवजह हाथ डालने के बजाय दूसरे मुद्दों पर ध्यान देना चाहिये। देश के संविधान ने हक दिया है कि हर व्यक्ति अपने मजहब को मानने और उसके नियमों के अनुसार रहने के लिये आजाद है। इस्लाम के भी अपने कायदे और कानून उसी तरीके से हैं, जैसे दूसरे महजब के होते हैं। इस्लाम में अगर चार शादियों का हक दिया गया है तो कुछ पाबंदियां भी लगायी गयी हैं। कोई यूं ही चार शादियां नहीं कर सकता। महिला मजबूर हो, उस की कोई सरपरस्ती न हो, विधवा हो या उसकी इज्जत पर खतरा हो तो बहुविवाह करने का हुक्म है। यह सच है कि कुछ लोग इसका गलत फायदा उठाते हैं, पर इसके चलते इस धार्मिक कानून पर सवाल उठाना अनुचित है। मजहब के इस नियम को बदला नहीं जा सकता। केन्द्र सरकार को चाहिए कि, यह इस्लाम का अपना मामला है, इसमें सरकार के दखल से केवल विवाद बढ़ने के अलावा कुछ और हासिल नही होगा। सरकार अपने मकसद में सफल नहीं हो सकती, क्योंकि सदियों से चली आ रही परम्परा को बदलना आसान नहीं है। सरकार सभी को उनके धर्म के हिसाब से अपने हक हुकूक के साथ जीने दे। भारतीय लोकतंत्र में मज़हब आजाद हैं और आजादी का हनन किसी भी मज़हब द्वारा कत्ताई बर्दाश्त नहीं किया गया है।
औरतों का किसी भी धर्म या समाज से ताल्लुक हो, ज़रूरी है कि वह समाज में अपने अधिकारों के लिए आज़ाद हो| हिन्दू औरतें हो या मुस्लिम औरतें, वें आज भी संवैधानिक, सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक संस्थानों से अपने हक़ों के लिए लड़ रहीं हैं| भारत में कहीं तीन तलाक का मसला है, तो कहीं गर्भ में बेटी मार दिए जाने का मसला है, यह सच है कि महिलाओं का संघर्ष इक्कीसवी सदी में आकर भी नहीं रुका| इसलिए औरतों को उनके समाज से पहचान कर न्याय करने की बजाय औरतों की बुनियादी लड़ाई पर न्याय मिलना चाहिए। औरतो को भी चाहिए की वो अपने मज़हबी और आईनी हक़ों को जाने और अपने हक़ के हुसूल के लिए अपने आँचल को परचम बना कर इंक़लाब लाने के लिए कोंशा रहे।
(लेखिका मुस्लिम महिलाओं के एक संगठन से जुडी है)